मां गंगा

मां गंगा
गौमुख से अवतरित
मुक्तिवाहिनी गंगा 
राजा भगीरथ के अथक
अनथक प्रयास से उदित
गंगोत्री को पार कर 
उत्तरकाषी से काषी
श्रद्धा-भक्ति का भण्डार
हिन्दूधर्म का आगार
चल पडते हैं भक्तगण
तेरे दर्षनार्थ गंगोत्री
जहां होता है मिलन
श्रद्धावान भक्तों का 
क्रती है बडा उद्धार
पपियों के पापों का 
परन्तु आज- - -
डाल दिया है सुरंगों में 
बांध दिया है बांधों में
बिजली-पानी के लिये
फिर भी बहती अविरल
सिंचित करती धरा को 
कायम करती है एकता।
परन्तु प्रदूशित हो रहा है
 आज तेरा
उदगम स्थल
ग्लेषियर खूब घट रहे हैं
हो रही है तू आज क्षीण
ऐसे हैं हम भाग्यहीन 
अगर नही हुआ नियत्रण
प्रदूशणरूपी जहरीला सर्प
हमें डस कर मार देगा
हमें तेरा अस्तित्व बचााना है
जहरीले प्रदूशण को भगाना है।